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Siyasat Rajneeti Shayari in hindi

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मुर्दा लोहे को औजार बनाने वाले
अपने आँसू को हथियार बनाने वाले
हमको बेकार समझते हैं सियासत दांर
मगर हम है इस मुल्क की सरकार बनाने वाले !!

कैसी है ये ज़िम्मेदारी सांई की
जनता जान गयी मक्कारी सांई की
देश को लूटने वाले लूट के ले जाएं
मान गये हम चौकीदारी सांई की !!

मूल जानना बड़ा कठिन हैं नदियों का वीरो का
धनुष छोड़कर और गोत्र क्या होता हैं रणधीरो का
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर
जाति-जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर !!

मैं अपनी आँख पर चशमाँ चढ़ा कर
देखता हूँ नजर उतना ही आता हैं की ज़ितना
वो दिखाता है मैं छोटा हू मगर हर बार कद
अपना बढ़ा कर देखता हूँ !!

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदोस्तान थोडी है !!

दुश्मन भी मेरे मुरीद है शायद
वक़्त बे वक़्त मेरा नाम लिया करते है
मेरे गली से गुजरते है छुपा के खन्जर
रू-ब-रू होने पर सलाम किया करते है !!

सियासत की रंगत में ना डूबो इतना
कि वीरों की शहादत भी नजर ना आए
जरा सा याद कर लो अपने वायदे जुबान को
अगर तुम्हे अपनी जुबां का कहा याद आए !!

न मस्जिद को जानते हैं
न शिवालो को जानते हैं
जो भूखे पेट हैं
वो सिर्फ निवालों को जानते हैं !!

तु मेरा मुकाबला कहा करेगी बावली
हम तो वह जनाब हैं
जो सर्दियों में भी बड़ी बड़ी हस्तियों
के पसीने को छुड़वा देते हैं !!

आज मैं अकेला ही हूं तो क्या हुआ
एक दिन उसे भी
मेरे लिए तड़ पना ही पड़ेगा
सब सुनना साल लगेगा !!

वाह रे वाह भारत का महान कानून यहां
नाबालिक शादी करे तो जुर्म और
बलात्कार करे तो माफी और साथ मे
सिलाई मशीन फ्री !

सियासत की रंगत में ना डूबो इतना
कि वीरों की शहादत भी नजर ना आए
जरा सा याद कर लो अपने वायदे जुबान को
अगर तुम्हे अपनी जुबां का कहा याद आए !!

याद है इक जुमले पर जब क़ुर्बान गई है
ये जनता रूठी तो फर्जी़ ऑंसू पर मान
गई है ये जनता ललित से नीरव मोदी तक
पर ख़ामोशी ही ख़ामोशी किसके अच्छे
दिन आये अब जान गई है ये जनता !

इंडिया की राजनीति मे मचा हुआ घमासान है
लोक सभा की सीट ही जैसे हर नेता का अरमान
है टिकेट पाने होड़ में रिश्ते नाते भूल रह्रे है
पुरानी पार्टी छोड़ कर नए गठबंधन जोड़ रहे है !

पूँजीपतियो से सन्यासी की यारी पर लानत है
चौकीदार तेरी ऐसी चौकीदारी पर लानत है
याद करो वो जुमला न खाने दूँगा ना खाऊँगा
वतन पे ऑंच गई तो फिर लाहौर तलक चढ जाऊँगा !

आज कल हर जगह वोटो के भिखारी निकल पड़े है
कुटिल राजनीति के मझे हुए खिलाडी निकल पड़े है
गलतियों का दोष औरो पर मढने का जो चलन है
उसे निभाने के लिये बहुत से अनाड़ी निकल पड़े है !

जनता को वो झूंठे वादे अब फिर से मिलने वाले है
हम जनता के सेवक हैं झांसे फिर से मिलने वाले है
दुनिया की सारी सुख सुबिधायें अब जनता की है
सावधान जनता अब वोटों के भिक्षुक मिलने वाले है !

इस मंच को सभा को ज़रा प्यार दीजिये
थोड़ा प्रशंसकों पर उपकार कीजिये
नेह निमंत्रण इसे स्वीकार लीजिये
नेता जी आप मंच पर आकर विराजिये !

अब ख़ासदार ख़ास आदमी का है कहाँ
अब आमदार आम आदमी का है कहाँ
अब आजकल के नेता कहाँ आपसे यहाँ
अब आदमी भी आज आदमी का है कहाँ !

भ्रष्टाचार को भ्रष्टाचार के नाम से ही बेच
रहे है काले धन के है ये वेपारी वोटों के
गरीबी वो क्या मिटायेंगे मिटाकर गरीबों को
जमीन भी बेच खायी ये सौदागर हैं वोटों के !

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