Manzil Shayari (Manjil Shayari) - मंजिल शायरी इन हिंदी
हल मुश्किल का पाने के लिए
दिमागी पेच लड़ाने पड़ते हैं,
बैठे-बैठे
मंजिल नहीं मिलती
कुछ कदम बढ़ाने पड़ते हैं.
मंजिल इंसान के हौसलें आजमाती है,
सपनों के पर्दे, आँखों से हटाती है,
किसी भी बात से हिम्मत ना हारना
ठोकर ही इंसान को चलना सिखाती है.
राहों में मुसीबत आई,
पर मैंने हार नहीं मानी,
मंजिल पर पहुँच कर
लिखूँगा
अपनी सफलता की कहानी।
मंजिल मिले या ना मिले,
ये तो मुकद्दर की बात है,
हम कोशिश भी ना करे
ये तो गलत बात हैं.
डर मुझे भी लगा फ़ासला देख कर,
पर मैं बढ़ता गया रास्ता देख कर,
ख़ुद-ब-ख़ुद मेरे नजदीक आती गई,
मेरी मंजिल मेरा हौंसला देख कर.
सीढ़िया उन्हें मुबारक हो
जिन्हें सिर्फ़ छत तक जाना है,
मेरी मंजिल तो
आसमान है
रास्ता मुझे ख़ुद बनाना है.
रख हौसला वो मंज़र भी आएगा,
प्यासे के पास चल के समन्दर भी आएगा,
थक
कर ना बैठ ऐ मंजिल के मुसाफ़िर
मंजिल भी मिलेगी, और मिलने का मज़ा भी आएगा.
यूँ जमीन पर बैठकर क्यूँ आसमान देखता है,
पंखों को खोल जमाना सिर्फ़ उड़ान
देखता है,
लहरों की तो फितरत ही है शोर मचाने की
मंजिल उसी की होती
है जो नजरों में तूफ़ान देखता है.
कामयाबी के लिए जरूरी है
सही रास्ता चुनना,
किसी भी रास्ते पे चलने
से
मंजिल नहीं मिलती.
अगर दिलकश हो रास्ता,
फिर तो फिकर ही नहीं है,
ना मिले मंजिल ना सही,
फिर भी जिन्दगी हंसीं है.
रास्तों की परवाह करूँगा,
तो मंजिल बुरा मान जायेगी,
फ़िक्र छोड़ दूँ
रास्तों की
तो मंजिल ख़ुद ही
मेरे पास आती नजर आएगी.
सपनों की मंजिल पास नहीं होती,
जिन्दगी हर पल उदास नहीं होती,
ख़ुदा
पर यकीन रखना मेरे दोस्त,
कभी-कभी वो भी मिल जाता है
जिसकी आस नहीं
होती…
ना पूछों कि मेरी मंजिल कहाँ है,
अभी तो सफ़र का इरादा किया है,
ना
हारूँगा हौसला उम्र भर
ये मैंने किसी से नहीं, खुद से ही वादा किया है.
ना किसी से कोई ईर्ष्या,
ना किसी से कोई होड़,
मेरी अपनी मंजिल
मेरी अपनी दौड़.
मिट्टी का तन है,
क्या दिन रात सजाना,
मिट्टी ही मंजिल,
तन पर
क्या इतराना.
मंजिल पर शायरी
मेरी हर अदा का आइना तुझसे है,
मेरी हर मंजिल का
रास्ता तुझसे है,
कभी दूर न होना मेरी जिन्दगी से
मेरी हर ख़ुशी का
वास्ता तुझसे है.
रोक नहीं सकता कोई,
मन से इतना कहना होगा,
मंजिल को पाने के लिए
कठिन रास्तों पर चलाना होगा.
कभी कभी लंगड़े घोड़े पे दाव
लगाना ज्यादा सही होता है,
क्योंकि दर्द
जब जूनून बन जाए
तब मंजिल बहुत नजदीक लगने लगती हैं.
ठोकरे मिलती है सफलता की राहों में
यह हर कोई जानता है,
पर मंजिल
सिर्फ उसी को मिलती है
जो कभी हार नहीं मानता है.
उल्फत में अक्सर ऐसा होता है,
आँखें हंसती है और दिल रोता है,
मानते
है हम जिन्हें मंजिल अपनी
हमसफ़र उनका कोई और होता हैं.
कोशिश के बावजूद हो जाती है कभी हार,
होकर निराश मत बैठना ऐ मेरे यार,
बढ़ते रहना आगे ही जैसे भी मौसम हो,
पा लेती मंजिल चींटी भी…गिर फिर
कर कई बार.
सामने हो मंजिल तो रास्ते ना मोड़ना,
जो भी मन में हो वो सपना मत तोड़ना,
कदम कदम पर मिलेगी मुश्किल आपको
बस सितारे छूने के लिए जमीन मत
छोड़ना.
इंसान कभी रोता है
तो कभी मुस्कुराता है,
सारा उम्र सफर में गुजरता
है,
एक मंजिल मिल जाएँ
तो दूसरा तलाशता है.